शिवम सोसायटी में अवैध निर्माण को लेकर कानूनी विवाद: समाजसेवक जाहिद अली ने महाडा और बीएमसी अधिकारियों सहित 10 लोगों को भेजा लीगल नोटिस



शिवम सोसायटी में अवैध निर्माण को लेकर कानूनी विवाद: समाजसेवक जाहिद अली ने महाडा और बीएमसी अधिकारियों सहित 10 लोगों को भेजा लीगल नोटिस

मुंबई, 20 अप्रैल 2025

रिपोर्ट: नदेम कपूर,

मुंबई के महिम स्थित शिवम सोसायटी में अवैध निर्माण को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। प्रसिद्ध समाजसेवी श्री जाहिद अली नासिर अहमद शेख ने इस मामले में महाडा और बीएमसी अधिकारियों सहित कुल 10 लोगों को कानूनी नोटिस भेजा है। नोटिस के अनुसार, सोसायटी में कई फ्लैट्स में गैरकानूनी ढांचे खड़े कर दिए गए हैं, जो न केवल सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हैं, बल्कि सार्वजनिक आवागमन में भी बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

नोटिस में अधिवक्ता श्री नितिन शिवराम साठपुते (चेयरमैन, शिवम सोसायटी) को प्रमुख रूप से आरोपित करते हुए कहा गया है कि उन्होंने अवैध निर्माण करने वालों को संरक्षण दिया है। इसके अलावा, फ्लैट नंबर 101 से 104 और 301 से 303 (आंशिक रूप से) में रहने वाले श्री विनीत प्रमोद ढगे, श्री सिद्धेश नारायण शिरोडकर और श्री गौतम नारायण शिरोडकर पर भी गैरकानूनी निर्माण और कब्जे का आरोप लगाया गया है।

नोटिस में यह भी उल्लेख किया गया है कि श्री जाहिद अली ने दिनांक 4 फरवरी 2025 को उक्त मामले की शिकायत संबंधित अधिकारियों को लिखित रूप में दी थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि एमएचएडीए के उपाध्यक्ष, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मुख्य अधिकारी, मुख्य सतर्कता अधिकारी, और बीएमसी के जी/नॉर्थ वार्ड के सहायक और कार्यकारी अभियंताओं ने भी इस मामले में लापरवाही दिखाई है, जिससे संदेह होता है कि उन्होंने भी इस अवैध गतिविधि को मौन सहमति दी है।

कानूनी नोटिस में उल्लंघनकर्ताओं पर महाराष्ट्र प्रादेशिक और नगर योजना अधिनियम, 1966 की धारा 43, 52, 53, महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 की धारा 152(A), और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई की मांग की गई है। इन धाराओं के अंतर्गत दोष सिद्ध होने पर सात साल तक की सजा का प्रावधान है।

श्री जाहिद अली ने सात दिनों के भीतर अवैध निर्माण हटाने और सार्वजनिक रास्ता साफ करने की मांग की है, अन्यथा उन्होंने सिविल और क्रिमिनल दोनों स्तरों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है। इसके साथ ही नोटिस भेजने की लागत ₹20,000 भी आरोपियों पर आरोपित की गई है।

यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाता है, बल्कि एक बार फिर यह दर्शाता है कि कैसे मुंबई जैसे महानगरों में अवैध निर्माण और भ्रष्टाचार आम नागरिकों के जीवन को प्रभावित कर रहा है।  


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