समाजसेवक एडवोकेट नितीन सातपुते द्वारा जनहित याचिका दाखिल — भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई को महाराष्ट्र सरकार द्वारा CJI प्रोटोकॉल न दिए जाने से सामाजिक विषमता को बढ़ावा : आरोप
मुंबई: भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई के महाराष्ट्र दौरे के दौरान उन्हें अपेक्षित VIP प्रोटोकॉल न दिए जाने की कथित घटना ने राज्य में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस गंभीर मुद्दे पर प्रख्यात समाजसेवक और अधिवक्ता नितीन सातपुते ने महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें इस घटना की जांच और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश को मिला अपमानजनक व्यवहार?
न्यायमूर्ति भूषण गवई, जो महाराष्ट्र के अमरावती जिले से ताल्लुक रखते हैं, हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश पद पर आसीन हुए हैं। वे पहले दलित समुदाय के व्यक्ति हैं जो इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर नियुक्त हुए हैं, जिससे महाराष्ट्र और देशभर में गौरव की भावना देखी गई थी। उनके सम्मान में महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल द्वारा एक भव्य सत्कार समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें उन्होंने मंच से यह पीड़ा व्यक्त की कि महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें वह आधिकारिक प्रोटोकॉल नहीं दिया, जिसकी अपेक्षा की जाती है।
VIP प्रोटोकॉल में चूक या जानबूझकर अनदेखी?
मुख्य न्यायाधीश को सुरक्षा, आधिकारिक वाहन, सम्मान-स्वरूप स्वागत जैसी सुविधाएं प्रदान करना प्रोटोकॉल का हिस्सा होता है। लेकिन इस बार इन सभी प्रावधानों की अवहेलना किए जाने का आरोप है। X (पूर्व में ट्विटर) पर कई सामाजिक और राजनीतिक नेताओं जैसे “@Awhadspeaks” और “@Rohini_khadse” ने भी इस घटना को “शर्मनाक” बताया है और राज्य सरकार के रवैये की आलोचना की है।
नितीन सातपुते की जनहित याचिका में क्या कहा गया है?
एडवोकेट नितीन सातपुते, जो वर्षों से सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, ने याचिका में कहा है कि यह न सिर्फ एक संवैधानिक पद की अवमानना है, बल्कि यह राज्य प्रशासन द्वारा सामाजिक विषमता को बढ़ावा देने का कार्य भी है। उन्होंने अदालत से अपील की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
उन्होंने कहा, “एक दलित मुख्य न्यायाधीश का अपमान, पूरे न्याय तंत्र और समाज के उस वर्ग का अपमान है जो बराबरी के अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार की यह चूक केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और संवैधानिक मूल्यों की उपेक्षा है।”
सामाजिक-राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर तीव्र प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई सामाजिक संगठनों और नेताओं ने सरकार से माफी मांगने और जिम्मेदारी तय करने की मांग की है। इस प्रकरण ने शासन के आचरण पर गहन सवाल खड़े कर दिए हैं।
याचिका में एडवोकेट शोभा बुध्दिवंत याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रही हैं।
यह मामला आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति और प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर बड़ा मुद्दा बन सकता है।